शनिवार, 29 नवंबर 2008

दहशत के साठ घंटे......

अंत हो गई वो काली राते जिसके पल पल हर भारत वासी पर भारी थे....कहना कुछ गलत है पर देश का अब तक का सबसे बड़ा रियैलीटी शो था....मुंबई की ये वारदात.....जिसे पुरे देश ने बहुत ही दिल लगा के देखा....मीडीया ने भी पुरी तीन राते उस खूबसूरत किनारे पर गुजारी जो उस वक्त दहशत से लबरेज़ थी.... रिपोर्ट तो कभी धूल चाटते चाटते रिपोर्टी कर रहे थे तो कभी हर गोली का लाइव दिखाने कि होड में दिखे...किसी ने कहा इस बार मीडीया बहुत फूक फूक के काम कर रही थी....तो किसी ने कहा कि...मीडीया फिर एक दूसरे से आगे निकलने की दौड़ लगाती दिखी.....और जब पुरी कार्यवाई ख़त्म हुई तो सुरक्षा बलों के साथ ही रिपोर्टो ने भी चैन की सांस ली...उसके बाद भी टी वी चैनलो का काम खत्म नहीं हुआ था.....अब इस बाद शुरु हुआ चैनल पर रोने रूलाने का सिलसिला......बुरा ना मानीये....पर सच में ये सब बहुत ही फिल्मी था....क्योकि जिस मां का बेटा गया जिस बीवी का सुहाग गया उस के गम का अंदाजा हम और आप कितने ही गाने सुन ले बिल्कुल भी लगा नहीं सकते....हम और आप भले कार्यवाई खत्म होने पर सैनिको से हाथ मिला के उन को हीरो बना दे पर आतंकियो से लड़त वो साठ घंटो को जिस तरह इन सैनिको ने गुजारे उस का अंदाजा लगाना मुशिकल बहुत ही मुशिकल है....पर हमें क्या हम पब्लिक है टी वी हमें रुलाता है और हंसाता है....... शुक्रिया...

रविवार, 23 नवंबर 2008

आईने के दो पहलू

......पहले खबरे थी की....जहां भी बम फटा.....हो ना हो कोई मुस्लिम संगठन ने किया है....और उस के बाद गाहे बगाहे हर कोई शुरू कर देता था पुरे मुस्लिम समाज को गरीयाने.....जिसे कहा जाये सब को एक साथ धो दिया जाता था.....हर मुस्लमान छुपा छुपा सा रहत...और जहां कोई बम फटा नहीं....की एक आम मुस्लिम जिसका ना बम से कोई नाता होता था ना आंतकवाद से खुद को कन्ही ना कन्ही गुनाहगार समझने लगता था...उनके घरो में शुरू हो जाती थी चर्चा घर के नवयुवको को समझाया जाने लगता था की घर से ज्यादा देर तक बाहर नहीं रहना...क्या पता कोई पुलिस वाला उठा के ले जाये और टी वी पर देख के पता चले की कल तक घर के आस पास क्रिकेट खेलने वाले लड़के को एक खूंखार आतंकवादी बना के लगा दी बेहद संगीन धारा............ये था आईने का एक पहलू.....दूसरा पहलू...कुछ इस तरह ह...जब से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गिरफ्तार किया गया है....अचानक विस्फोटो के पीछे "हिन्दू आतंकियो" का हाथ नज़र आने लगा...हर दिन नये खुलासे...हर दिन नया नाम....यहां तक की अब तक जो आंतकवाद मुस्लिम आतंकवाद के नाम से जाना जाता था रातों रात लोग ने उसे नये नाम से नवाज़ दिया पर देखते ही देखते हिन्दू वादी संगठन बचाव में उतरे और यकबयक आतंकवाद को किसी भी धर्म से जोड़ के साथ देखने पर एतराज़ जताया जाने लगा...कहा गया आतंकवाद तो सिर्फ आतंकवाद है...ना वो हिन्दू है ना वो मुस्लिम है.......पर जानते है....मुझे तो लगता है...सच में आतंकवाद ना हिन्दू होता है ना मुस्लिम ना यहूदी और ना ही फिलस्तनी.....ये होता है "राजनीतिक आतंकवाद" जो समय समय पर राजनेताओ की डूबती नैया को पार लगता है.......शुक्रिया....

बुधवार, 12 नवंबर 2008

बाबू

एक बहुत ही प्यारा सा शब्द है बाबू........इस शब्द का प्रयोग मैंने पहले एक आध बार घर पर पापा के मुंह से सुना था....पर जब से यहाँ(ऑफिस)आई हूं बाबू शब्द का प्रयोग बिल्कुल अलग॥और नये अंदाज़ में सुन रही हूं...यहां आप से छोटा तो बाबू है ही.....आप के बराबर और आप से बडा भी बाबू ही है.....वैसे बहुत ही मजेदार है ये बाबू शब्द...किसी को प्यार से बुलाना हो तो...बाबू इधर आओ...किसी को डांटना हो तो बाबू....सुना नहीं तुमने...या फिर किसी से कोई काम लेना हो तो.....बाबू.........कर दो ना...............और तो और....यहां अगर किसी को...... "जब वी मैट" की तर्ज पर गाली देनी हो तो कुछ इस अंदाज़ में दी जा सकती है.......सुनो बाबू तुम कुत्ते हो.....और तो और बाबू तुम कमीने भी हो.....और हां सुनो बाबू तुम कुत्ते की मौत मरोगे.... है ना कितना मजेदार शब्द बाबू..........

पंकज

पंकज वैसे तो एक शक्स का नाम है.....पर ये ऐसी शख्सियत है जो बहुत ही अलग सा बच्चा है....अपनी दुनिया में मगन रहने वाला ये लड़का बहुत ही अल्लहड़ या फिर कहूं मस्त रहने वाला लड़का है....जब ये हमारे ऑफिस में आया था तो बहुत ही दुब्का सा रहने वाला लड़का था.....पर अब जब से इसको नया नाम......माने गज़नी मिला है तब से हर तरफ गज़नी ही गज़नी है....क्या बदलें नाम आप की पहचान को इतना प्रभावित करते है...........

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

हेल्लो.....

एक नई कोशिश फिर से....