सोमवार, 29 दिसंबर 2008

हजारों ख्वाहीशें.....

क्या है ये ख्वाहीशें और क्यों होती है......क्या इनका होना बहुत ज़रूरी है...इनका ना होना क्या इंसान के जड़ होने का सबूत होता है................बस इसी कशमकश में रहती हूं...एक ख्वाहीश पुरी नहीं होती कि ...नई ख्वाहीश कोपल की तरह फूट जाती है.... तमन्ना थी जिंदगी में कुछ करु....जब कुछ करने लगी तब ....कि बहुत कुछ करना चाहती हूं...पर लगता है...कुछ करने और बहुत कुछ करने की ये भूख घटने की बजाये बढ़ती ही जा रही है....फिर एक ख्वाहीश करी की अब कोई और ख्वाहीश ना करुं पर देखती हूं कब तब यही सोच रहती है.....खुदा करे अब कोई ख्वाहीश ना हो अगर हो तो टूटे ना....क्योंकि बहुत दर्द होता है....ख्वाहीशात के टूटने पर...खुदा करे सब के सब ख्वाब पुरे हो॥आमीन ...खुदा हाफिज़

रविवार, 21 दिसंबर 2008

क्यों छोडा मुझे....?


मां क्यों छोड़ा मुझे....क्यों बना दिया मुझे एक गाली.....आज मैंने एक स्टोरी कानपुर की एक ऐसी बच्ची पर की जिसे कूड़े में फैंक दिया गया था....आज तक तो ये खबरें महानगरों में आम थी लेकिन छोटे शहरों में भी ये चलन इतनी तेज़ी से बढ़ रहा है जो बहुत.... बहुत ही दुख की बात है..........आख़िर ये क्या चलन है....क्यों बच्चों को इस कद्र फैंका जा रहा है...कहा गुम होते जा रहें है वो दिल....वो मर्दायऐं...क्या कारण है इस तरह बच्चों को फैंकने के पीछे....वो बच्चे जो किसी के घर का चिराग...किसी का फक्र होना चाहिए थे...क्यों इस तरह... कचरा बन जाते है...कौन जिम्मेदार है इसके लिए...वो लोग जो उस बच्चे को दुनिया में लाने की भूल करते है या फिर वो सामाजिक मर्यादाऐ जो अब बेमतलब बेमायने होते जा रहे है.......बहुत सी बहस होती है....बहुत से रिसर्च होते है....पर नतीजे के नाम पर वही ढाक के तीन पात.......कैसे इस समस्या को हल किया जा सकता है...मैं नहीं जानती पर एक छोटी सी इल्तजा करती हूं यूं ना इन... खूबसूरत मासूम जानों को धूल का फूल बनाईयें जिनकी जिम्मेदारी लेने लायक हम नहीं उन्हें दुनिया में लाने का हक भी नहीं है हमें.......

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

....धरती का स्वर्ग...


धरती पर अगर स्वर्ग है तो यहीं है...यहीं है...यहीं है....

बचपन से ही मैं ये बात सुनती और टीवी पर देखती हुई आई हूं...इसीलिए मैं काश्मीर जाने की तहे दिल से इच्छा रखती हूं......जम्मू काशमीर में सात चरणों में चुनाव हो रहे है....मेरा एक दोस्त दूरदर्शन के लिए चुनावों की रिपोर्टींग करने के लिए काशमीर में गया है वो अनंतनाग अउऱ श्रीनगर के बीच खूब आना जाना कर रहा है....इसी दौरान मेरी भी उससे बीच बीच में बातचीत होती रहती है...आखरी दफा जब मेरी उससे बात हुई ....तो उस वक्त उस की आवाज़ में कुछ थरथराहट थी अब ये नहीं पता की वो सर्दी के वजह से थी या फिर उसके साथ उस वाक्ये के वजह से जो उसने मुझे बताया......अपने मित्र से हुई बात चीत से मुझे काश्मीर के उन हालातो के बारे में पता चला जो उससे पहले मैं कई बार सुन औऱ पढ़ चुकी थी....पर उन बातों पर आधे मन से ही विश्वास करती थी...पर जब से उससे बात हुई है उन बातों पर विशवास करने को विवश हो जाती हूं...मुझे मेरे दोस्त की बात से लगा काशमीर के लोग दो भागों में बटे हुए है एक वो जो घाटी में जम्हूरीयत चाहते है और एक वो जो काशमीर में आज़ादी चाहते हैं........मुझे समझ में नहीं आता कि दक्षिण एशिया के इस मसले का हल कब होगा...खैर क्या होगा पता नहीं पर मेरी दिली दुआ है कि काशमीर में जल्द से जल्द सब ठीक हो जाये...ताकी मुझ जैसे लोग वहां जा सकें......आमीन....अल्लाह हाफिज़

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

बड़ी बेआबरु हो कर तेरे कूचे से निकले.....

बड़ी बेआबरु हो के तेरे कूचे से हम निकले...बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले.....
जी हां ये शेर मै बुश साहब कि हालत पर कहना चाहती हूं जनाब जाते जाते जूता खा गए.....फिर वो बात अलग है कि अंकल सैम बातों को संभालना बखूबी जानते है तो इस मसले को भी हसीं मे उड़ा दिया...वैसे अंकल ठीक ही किया...क्योंकि पुरी दुनिया अगर हंसे और आप ना हंसे तो कुछ बेतुका हो जाता....बस अफसोस है तो अल-जैदी का बेचारा खुद पर काबू ना कर सका और कर बैठा मनमर्जी....वैसे जैदी साहब मैं माफी चाहती हूं कि मैंने आप को बेचारा कहा....वैसे आप तो रातों रात मेरे हीरो बन गए....मैं खुद को डरते डरते पत्रकार मानती हूं पर ....इतनी हिम्मत मुझ में नहीं जितनी आप में हैं.....क्योंकि आप ने दिखा दिया पत्रकार का दमगा तो हर कोई टांग लेता है पर इस तमगे को चरितार्थ कोई कोई कर पाता है...आज ये पेशा कमाने खाने का एक रोजगार भर बन कर रह गया है...ये जज्बा बुहत ही कम लोगो के पास होता है...जी हां अपने देश का दर्द जानने महसूस करने और उसका बदला लेने का मद्दा.....बहुत कम ही बगैरवर्दी के लोगों के पास होता है......कुल मिला कर यही कहना चाहती हूं अंकल सैम...आप की रुखसती इराक से इस कद्र होगी ये तो आप ने कभी सोचा भी नहीं होगा.....अल जैदी साहब आप को मेरा सलाम.....खुदा करे आप के इस जज्बा का एक ज़र्रा मुझ में भी खुदा दे दे......शुक्रिया....................नाज़मा