सोमवार, 29 दिसंबर 2008

हजारों ख्वाहीशें.....

क्या है ये ख्वाहीशें और क्यों होती है......क्या इनका होना बहुत ज़रूरी है...इनका ना होना क्या इंसान के जड़ होने का सबूत होता है................बस इसी कशमकश में रहती हूं...एक ख्वाहीश पुरी नहीं होती कि ...नई ख्वाहीश कोपल की तरह फूट जाती है.... तमन्ना थी जिंदगी में कुछ करु....जब कुछ करने लगी तब ....कि बहुत कुछ करना चाहती हूं...पर लगता है...कुछ करने और बहुत कुछ करने की ये भूख घटने की बजाये बढ़ती ही जा रही है....फिर एक ख्वाहीश करी की अब कोई और ख्वाहीश ना करुं पर देखती हूं कब तब यही सोच रहती है.....खुदा करे अब कोई ख्वाहीश ना हो अगर हो तो टूटे ना....क्योंकि बहुत दर्द होता है....ख्वाहीशात के टूटने पर...खुदा करे सब के सब ख्वाब पुरे हो॥आमीन ...खुदा हाफिज़

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