शनिवार, 27 जून 2009

शनि का सदका....
अक्सर सड़क किनारे...यूं ही चौराहे पर॥आप को तेल के डिब्बे दिख जाते होंगे...हो सकता है यू चलते फिरते लोगों में से कुछ उसमें रुपया भी डाल दें॥लेकिन मैं एक ज़माने से उन बच्चों को देखती आ रही हूं .... जो शनिवार का इंतज़ार करते है और इसके आते ही मैले कूचले डिब्बों पर फूल और तेल डाले हर आने जाने वाले के आगे कर देते हैं....कुछ लोग उसमें कुछ डालते रहते हैं...तो कुछ दूर से देख के नज़रे घूमा लेते हैं...क्या है ये ...भीख....या वो डर जिसे शनि का सदका कहते है...मुझे नहीं पता...क्या सच में..तेल तिल या पैसे चढ़ा देने से शनि खुश हो जाते हैं...ये मेरे लिए बहुत बड़ी पहेली है....खैर...मेरे लिए यहां शनि का सदका अहम नहीं है... मेरे लिए वो बच्चे अहम है जो बड़ी हसरत के साथ हर आते जाते का चेहरा निहारते है कि कहीं कोई...इस डिब्बे की तरफ बढ़े और उस डिब्बे में कुछ डाल दे.....लेकिन जहां ये बच्चे उन हाथों को देखते है जो पैसे इस डिब्बे के सुपूर्द करे तो मैं उन हाथों को उस जज़्बे को देखना चाहती हूं जो इन बच्चों का ही शनि उतार दें....शुक्रिया....

मंगलवार, 23 जून 2009

पर्दा है पर्दा...

सरकोज़ी ने नया फरमान जारी किया है...
..पर्दा उतार फैंको...क्योंकि ये आपकी गुलामी का आपकी अति आज्ञाकारिता को दिखाता है...वहीं तालिबान कहते है कि गर बुर्का नहीं पहना तो आप की खैर नहीं.....इस बुर्का पहनने और उतार फैंकने के बीच किसी ने ये जानने की कोशिश की है कि जिसे ये पहनना है वो क्या चाहती हैं....तो जानकारी के लिए बता दूं कि जो मुस्लिम महिलाएं ये पहनती है अगर उनसे ये छिन्न लिया जाये तो शायद बाज़ार में वो दो क़दम भी ना चल पाये....खैर ...क्यों ये पूरी दुनिया जानने और मामने को तैयार नहीं है की ये मुद्दा पूरी तरह से व्यक्तिगत होता है...क्यों ये थोपने की जिद्द है.... फिर वो पहनने को लेकर हो या फिर उतारने को लेकर....इन सब के बीच याद आता है तो बस यही की इस दुनिया में बगैर लिबास आये थे...और जाना भी बगैर लिबास ही है...लेकिन इस सब के बीच किसी को भी ये फिक्र तो नहीं की क्या लेकर आये थे क्या लेकर जाना है चिंता है तो समाज में जीने के लिए बनाये नियम पर चल के जिन्दगी जीने की ...जो कम से कम मेरी समझ से बाहर है....

सोमवार, 8 जून 2009

कलाकार कभी मरते नहीं ...


हबीब तनवीर चले गए....
...एक पत्रकार के तौर पर मेरी हमेशा से ये तमन्ना थी...कि मैं हबीब तनवीर का इंटरव्यूह करू...लेकिन तनवीर के साथ मेरा वो सपना भी चला गया...खुदा उनकी रूह को सुकून और उनको जन्नत नसीब करे...वैसे हबीब तनवीर के बारे में मैं उतना नहीं जानती लेकिन.. हां उनके जितने भी नाटक देखे और पढ़े है...वो बेहद दिल के क़रीब रहे हैं...तनवीर का नाटक आगरा बाज़ार के साथ तो बचपन की यादें भी जुड़ी हैं....आगरा बाज़ार वो नाटक कहीये या धारावाहीक जिसे मैंनें बहुत ही दिलचस्पी से साथ देखा था... उन्होंने एक हिन्दू लड़की से शादी की थी...वैसे वो क्या अपने क्या दूसरे धर्म में उनकी कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी...लेकिन उनका जो धर्म था....वो बहुत ही खूबसूरत था... बहुत ही सच्चा था...वो था एक कलाकार का...एक इंसान का...कहते है इंसान की लेखनी उसके व्यक्तित्व का आइना होता है...और हबीब की अभीव्यक्ति बहुत ही सशक्त थी...उनकी दुनिया से रुखसती पर सब की तरह मैं भी बहुत ग़मगीन हूं लेकिन ....वो हमेशा हमेशा ज़िन्दा रहेंगे ये मैं अच्छी तरह से जानती हूं क्योंकि...कलाकार कभी मरते नहीं....