सरकोज़ी ने नया फरमान जारी किया है...
..पर्दा उतार फैंको...क्योंकि ये आपकी गुलामी का आपकी अति आज्ञाकारिता को दिखाता है...वहीं तालिबान कहते है कि गर बुर्का नहीं पहना तो आप की खैर नहीं.....इस बुर्का पहनने और उतार फैंकने के बीच किसी ने ये जानने की कोशिश की है कि जिसे ये पहनना है वो क्या चाहती हैं....तो जानकारी के लिए बता दूं कि जो मुस्लिम महिलाएं ये पहनती है अगर उनसे ये छिन्न लिया जाये तो शायद बाज़ार में वो दो क़दम भी ना चल पाये....खैर ...क्यों ये पूरी दुनिया जानने और मामने को तैयार नहीं है की ये मुद्दा पूरी तरह से व्यक्तिगत होता है...क्यों ये थोपने की जिद्द है.... फिर वो पहनने को लेकर हो या फिर उतारने को लेकर....इन सब के बीच याद आता है तो बस यही की इस दुनिया में बगैर लिबास आये थे...और जाना भी बगैर लिबास ही है...लेकिन इस सब के बीच किसी को भी ये फिक्र तो नहीं की क्या लेकर आये थे क्या लेकर जाना है चिंता है तो समाज में जीने के लिए बनाये नियम पर चल के जिन्दगी जीने की ...जो कम से कम मेरी समझ से बाहर है....
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1 टिप्पणी:
रौशनाई जी,
अच्छा लगा!
आपका लेख पढ़के लग रहा है कि आपको इतिहास की जानकारी है। आपने कहा है कि जब मानव का उदय हुआ था वो नंगे ही आया था.. यानि आप आदिमानव की बात कर रही हैं। लेकिन कुछ क्षण बाद ही आप कह रही हैं कि किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि पहनने वाले क्या चाहते हैं। मैं आपकी इस राय से एकदम सहमत हूं, कि इसका अधिकार पहनने वाले को ही होना चाहिए कि उसे क्या पहनना है? वह क्या चाहता... लेकिन इसी बीच आपका एक कंमेंट है कि अगर महिलाएं बुर्का नहीं पहनेगी तो वह बाजार में दो कदम भी नहीं चल पाएगी। तो रौशनाई जी आपके विचारों से मैं यहां पर असहमति जताता हूं। जो आप समझ सकती हैं...... बात रही समाज की... तो मैं आपको एक बात साफ कर दूं जब समाज में समानता कि बात कि जाती है...पुरूष स्त्री में समानता.. तो वैसे में यह भेदभाव क्यों... दूसरी बात यह है कि जिस इस्लाम में बुर्का की बात करता है... वह वहां की भौगोलिक अनूकुलता के कारण अपनाई गई थी। लेकिन बाद में जहां जहां इस्लाम गया वहां वहां बुर्का गया। खैर, छोड़िये इस पर काफी लंबा बहस किया जा सकता है। अब हम असल मुद्दे पर आते हैं कि क्या सरकोजी का उठाया गया कदम गलत है या सही .... तो यह मेरे नजरों में उठाया गया सही कदम है...वह एक ऐसा सामाजिक परिवर्तन की नींव रखा है जिसका असर कुछ दशक बाद दूनिया भर में देखने को मिलेगा... अगर कहा जाय कि फ्रांस की क्रांति जिसने विश्व इतिहास को बदलने और पुर्नजारगरण का हिस्सा बनने का काम किया था...उसके बाद उठाया गया यह एक बहुत बड़ा कदम है... जिसने किसी भी ऐसी चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया है जो धार्मिकता का प्रतीक है..जैसे- पगड़ी,दाढ़ी,स्कार्फ, क्रास आदि.. हालांकि कुछ लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता का समाप्त करने वाला बता रहे हैं। लेकिन लिबर्टी और लॉ के बीच में समानता बनाना जरुरी होता है.. जिससे की एक राष्ट्रीय राज्य का निर्माण हो सके.. साथ ही साथ मेरी समझ यह सभ्य समाज के लिए भी जरूरी है।
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