रविवार, 23 नवंबर 2008
आईने के दो पहलू
......पहले खबरे थी की....जहां भी बम फटा.....हो ना हो कोई मुस्लिम संगठन ने किया है....और उस के बाद गाहे बगाहे हर कोई शुरू कर देता था पुरे मुस्लिम समाज को गरीयाने.....जिसे कहा जाये सब को एक साथ धो दिया जाता था.....हर मुस्लमान छुपा छुपा सा रहत...और जहां कोई बम फटा नहीं....की एक आम मुस्लिम जिसका ना बम से कोई नाता होता था ना आंतकवाद से खुद को कन्ही ना कन्ही गुनाहगार समझने लगता था...उनके घरो में शुरू हो जाती थी चर्चा घर के नवयुवको को समझाया जाने लगता था की घर से ज्यादा देर तक बाहर नहीं रहना...क्या पता कोई पुलिस वाला उठा के ले जाये और टी वी पर देख के पता चले की कल तक घर के आस पास क्रिकेट खेलने वाले लड़के को एक खूंखार आतंकवादी बना के लगा दी बेहद संगीन धारा............ये था आईने का एक पहलू.....दूसरा पहलू...कुछ इस तरह ह...जब से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गिरफ्तार किया गया है....अचानक विस्फोटो के पीछे "हिन्दू आतंकियो" का हाथ नज़र आने लगा...हर दिन नये खुलासे...हर दिन नया नाम....यहां तक की अब तक जो आंतकवाद मुस्लिम आतंकवाद के नाम से जाना जाता था रातों रात लोग ने उसे नये नाम से नवाज़ दिया पर देखते ही देखते हिन्दू वादी संगठन बचाव में उतरे और यकबयक आतंकवाद को किसी भी धर्म से जोड़ के साथ देखने पर एतराज़ जताया जाने लगा...कहा गया आतंकवाद तो सिर्फ आतंकवाद है...ना वो हिन्दू है ना वो मुस्लिम है.......पर जानते है....मुझे तो लगता है...सच में आतंकवाद ना हिन्दू होता है ना मुस्लिम ना यहूदी और ना ही फिलस्तनी.....ये होता है "राजनीतिक आतंकवाद" जो समय समय पर राजनेताओ की डूबती नैया को पार लगता है.......शुक्रिया....
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1 टिप्पणी:
प्रिय रोशनाई,
तुम्हारी इस सोच से मैं भी सहमत हूं । परंतु बहुत पुरानी एक कहावत है कि जौ के साथ घून भी पिसाता है। खैर छोड़िये ये सब बातों को... मेरे जेहन में एक सवाल उठ रहा है कि लोग किसी भी घटना को धर्म से जोड़कर क्यों देखते हैं। धर्म से खेलना त राजनीतिज्ञों, मौलवी, पुरोहितो के लिए होता है। आम आदमी मानवतावाद में विश्वास क्यों नहीं रखता है। क्यों हर आदमी इस बात से आहत हो जाता है कि कोई मेरे धर्म के जुड़े व्यक्ति को बदनाम कर रहा है। रौशनाई, मैं तो उस दिन के इंतजार में हूं जिस दिन इस धरती पर एक ही वाद हो...मानवतावाद...
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